ग़ैर तो ग़ैर अयादत को न आया अपना
आज कल चल रहा गर्दिश में सितारा अपना
वक़्ते गर्दिश में करें बात क्या हम गैरों की
छोड़ देता है यहां साथ भी साया अपना
यूं ही कटते जो रहे पेड़ तो फिर बतलाओ
ये परिंदे कहाँ ढूंढेंगे ठिकाना अपना
लोग हाथों में नमक ले के फिरा करते हैं
ज़ख्म हरगिज़ न ज़माने को दिखाना अपना
माँ के मरने का कोई सदमा नही बेटों को
फ़िक्र ये है कहीं मर जाए न हिस्सा अपना
उनके आने की खबर से हुआ दिल पागल सा
सच्चा लगने लगा कल रात का सपना अपना
याद आते हैं बहुत साथ गुज़ारे लम्हे
रूठ जाना वो तेरा और मनाना अपना
हमको ग़ज़लें तो सुनानी ही पड़ी महफ़िल में
चल सका आज न कोई भी बहाना अपना
कुछ तो खूबी तुझे बख्शी है तेरे मौला ने
यूं ही नही तौसीफ होता है ज़माना अपना ।
मो. तौसीफ रजा
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